कल यानि 15 अगस्त को हम लोग स्वतंत्रता दिवस मना रहे लेकिन आज हम आपको इतिहास में ज़रा पीछे लेकर चलते हैं और आपको मेवात समुदाय के बारे में बताते है की कैसे मेवात के 10 हजार बहादुरों ने अंग्रेजों के खिलाफ 1857 की आजादी की लड़ाई में अपनी जान हंसते-हंसते देश पर लुटा दी थी। शहीद होने वालों में से ज्यादातर मेव मुसलमान ही थे जिनसे आज देशभक्ति का 'सबूत' मांगा जा रहा है।
पिछले कुछ सालों में आपने हरियाणा के मेवात का नाम किन वजहों से सुना था? गुड़गांव गजेटियर के मुताबिक में मेव मुसलमानों ने साल 1800 के शुरूआती सालों से ही अंग्रेजों की नाक में दम कर रखा था। 1803 में अंग्रेज-मराठों के बीच हुए लसवाड़ी के युद्ध में मेव छापामारों ने दोनों ही सेनाओं को नुकसान पहुंचाया और लूटपाट की थी। अंग्रेज इससे काफी नाराज़ थे और तभी से मेवातियों को सबक सिखाने का मौका ढूंढ रहे थे।
साल 1806 में नगीना के नौटकी गांव के रहने वाले मेवातियों ने मौलवी ऐवज खां के नेतृत्व में अंग्रेज सेना को काफी नुकसान पहुंचाया। इस हार से अंग्रेज घबरा गए और दिल्ली के रेजीडेंट मिस्टर सेक्टन को सन 1807 में अपने अधिकारियों को एक ख़त के जरिए समझाया कि मेवातियों के साथ समझौता कर लेना चाहिए। हालांकि ये अंग्रेजों की चाल थी और वो सही वक़्त का इंतज़ार कर रहे थे, जो मौका उन्हें नवंबर 1857 में मिल गया।
1857 का स्वतंत्रता संग्राम और मेवात
भारत के प्रथम स्वतंत्रता संग्राम से जुड़े इतिहास के पन्नों को पलटे तो पता चलता है कि मेवात से ज्यादा खून शायद ही कहीं और बहाया गया हो. 1806 की लड़ाई के बाद से ही मेवात के किसानों पर अंग्रेजो के ज़ुल्म बढ़ने लगे थे. इतिहासकार एवं अखिल भारतीय शहीद सभा के राष्ट्रीय चेयरमैन सरफूद्दीन खान मेवाती बताते हैं कि 1842 में मेवात क्षेत्र का राजस्व 11 लाख 14 हजार रुपये आंका गया जो कि फसल उत्पादन के मुकाबले काफी ज्यादा था और खुद लार्ड कनींघम ने भी ये बात मानी थी। बताया जाता है कि 10 मई 1857 को चांद खान नामक मेवाती सैनिक ने अंग्रेजों पर गोलियां बरसा दी थीं। बाद में विरोध की यह आग पूरे देश में फैल गई।
महर्षि दयानंद यूनिवर्सिटी रोहतक से मेवात विद्रोह पर शोध कर चुकीं शर्मिला यादव का मानना है कि 20 सितंबर 1857 को अंग्रेजों ने दिल्ली पर कब्ज़ा कर लिया था और उनकी नज़र हरियाणा में मौजूत मेव विद्रोही खटक रहे थे। उनकी इस शोध के मुताबिक दिल्ली पर कब्जे के बाद पूरे एक साल तक अंग्रेजी सेना ने हरियाणा में दमन किया।
8 नवंबर 1857 को अंग्रेजों ने मेवात के सोहना, तावडू, घासेडा, राईसीना और नूंह सहित सैकड़ों गांवों में कहर बरसाया था। अंग्रेजों की कुमाऊं बटालियन का नेतृत्व लेफ्टिनेंट एच ग्रांट कर रहे थे, यह दस्ता कई गांवों को तबाह करता हुआ गांव घासेड़ा पहुंचा, जहां 8 नवंबर को घासेडा के खेतों में अंग्रेज और मेवातियों के बीच जबरदस्त लड़ाई हुई। गांव घासेडा के 157 लोग शहीद हुए लेकिन जवाबी कार्रवाई में उन्होंने अंग्रेज अफसर मेकफर्सन का कत्ल कर दिया।
19 नवंबर 1857 को मेवात के बहादुरों को कुचलने के लिये बिग्रेडियर जनरल स्वराज, गुडग़ांव रेंज के सह उपायुक्त कली फोर्ड और कैप्टन डूमंड के नेतृत्व में टोहाना, जींद प्लाटूनों के अलावा भारी तोपखाना सैनिकों के साथ मेवात के रूपडाका, कोट, चिल्ली, मालपुरी पर जबरदस्त हमला बोल दिया। इस दिन अकेले गांव घासेड़ा के 425 मेवाती बहादुरों को बेरहमी से कत्ल कर दिया गया। इस दौरान अंग्रेजों ने मेवात के सैकड़ों गांवों में आग भी लगा दी। सरकारी आंकड़ों के मुताबिक इस दौरान अंग्रेजों ने 3000 लोगों को फांसी या फिर गोली मारकर मौत के घाट उतार दिया। हालांकि इतिहासकारों का मानना है कि इस दौरान 10000 से ज्यादा लोग शहीद हुए थे।
1857 के गदर के इन शहीदों की याद में ही मेवात विकास प्राधिकरण ने 2007 में 12 गांवों में शहीद मीनारें भी बनवाने का काम शुरू किया था जिससे लोग अपने गौरवशाली अतीत को याद रख सके. हालांकि इन 13 स्मारकों में से सिर्फ 9 ही अभी तक बनकर तैयार हो सके हैं। इनमें से नगीना, फिरोजपुर झिरका, महूं-चौपड़ा, नूंह, दोहा-रावली, तावड़ू, उटावड़ में बन चुके हैं जबकि आकेड़ा, इंदाना, पिनगवां, पुन्हाना में अभी तक काम शुरू नहीं हुआ है। इतिहासकार मोहम्मद अरशद ने बताया कि रूपड़ाका गांव के 425 शहीदों की याद में साल 1983 के दौरान तत्कालीन सीएम भजन लाल, तत्कालीन सांसद चौधरी रहीम खां और तत्कालीन विधायक अजमत खान ने शहीद स्मारक बनवाया था।